महामारी रोग (संसोधन) अध्यादेश 2020 : शासन व्यवस्था
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1.चर्चा में क्यों
2.अध्यादेश में प्रावधान
3.महामारी अधिनियम 1897
4.अधिनियम का इतिहास
चर्चा में क्यों ?
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हाल ही कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच ओडिशा सरकार ने एक अध्यादेश लागू किया है जिसमें महामारी के कारण लागू नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए दो साल तक की कैद का प्रावधान है। आधिकारिक सूत्रों ने बृहस्पतिवार को कहा कि अध्यादेश में महामारी अधिनियम,1897 की एक धारा में संशोधन किया गया है।
पृष्ठभूमि
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महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के अनुसार मूल कानून के तहत जारी किसी आदेश या नियमन की अवज्ञा करने वालों को दो साल तक की कैद या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा भुगतनी पड़ सकती है।इसमें कहा गया, ‘‘इस कानून के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय और जमानती है.’’
महामारी अधिनियम, 1897 क्या है ?
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यह कानून ख़तरनाक महामारी के प्रसार की बेहतर रोकथाम के लिए बनाया गया है।
केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को धारा 2 को लागू करने के लिए कहा है।
धारा 2 – जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी ख़तरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका है, तब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद क़ानून इस महामारी को रोकने के लिए काफ़ी नहीं हैं, तो कुछ उपाय कर सकती है।ऐसे उपाय, जिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके।
इस अधिनियम की धारा 2 के भी 2 उप-धारा हैं इसमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने का ख़तरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा।
महामारी अधिनियम 1897 के धारा-3 में जुर्माने का प्रावधान है जिसमें कहा गया कि महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है।
अधिनियम के धारा 4 में क़ानूनी सुरक्षा के बारे में प्रावधान है जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी क़ानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है।
ये धारा सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाता है कि ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ समस्याएं होती हैं तो अधिकारी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी।
अधिनियम का इतिहास
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1896-97 में पूना में प्लेग का भयंकर प्रसार हुआ।
सरकार ने रैण्ड को प्लेग कमिश्नर नियुक्त किया था तथा महामारी रोग अधिनियम के अन्तर्गत विस्तृत शक्तियाँ प्रदान की थी।
उसने इन शक्तियों के अन्तर्गत पृथक्कता के नियम लागू करने में आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया।
रैण्ड के पास जनता के प्रतिनिधि गए परन्तु उसने उनके प्रतिवेदन पर ध्यान नहीं दिया।
रैण्ड के अत्याचारों से जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।सभी पत्रों ने इस अत्याचार का विरोध किया।
लोकमान्य तिलक का हृदय इस भयंकर अपमान तथा अत्याचार से क्षुब्ध हो उठा।उन्होंने अपने पत्र ‘केसरी‘ में 4 मई, 1897 को बम्बई सरकार पर कड़ा प्रहार किया और स्थानीय नेताओ और सम्प्रान्त जन को भी अपने पत्रों से फटकार लगाई।
22 जून, 1897 को दामोदर चापेकर ने रैण्ड तथा उनके सहयोगी लेफ्टिनेन्ट अयरेस्ट की हत्या कर दी। तिलक के द्वारा लिखित उपरोक्त लेख को इन हत्याओं के लिए उत्तरदायी ठहराकर उनको 28 जुलाई, 1897 को गिरफ्तार कर उनके विरूद्ध राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया तथा उनको 18 माह की सख्त कैद की सजा दी गई. तिलक को सितम्बर, 1898 में जेल से छोड़ दिया गया थाpic source - google
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