Tuesday, July 7, 2020

ईरानी तथा मकदूनियाई आक्रमण

ईरानी और मकदूनियाई आक्रमण
 

ईरानी आक्रमण और उसके प्रभाव

  • ईरान के शासकों ने भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर व्याप्त राजनीतिक फूट से फायदा उठाया। ईरानी शासक दारयबहु (देरियस) 516 ई. पू. में पश्चिमोत्तर भारत में घुस गया और उसने पंजाब, सिंधु नदी के पश्चिमी इलाके और सिंध को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। यह क्षेत्र फारस (ईरान) का बीसवां प्रांत या क्षत्रपी बन गया।
  • फारस साम्राज्य में कुल मिलाकर 28 क्षत्रपियां थी। भारतीय क्षत्रपी में सिंधु, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत तथा पंजाब का सिंधु नदी के पश्चिम वाला हिस्सा था।
  • भारत और ईरान के बीच स्थापित उस सम्पर्क से दोनों के बीच व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला। ईरानियों के माध्यम से ही यूनानियों को भारत की अपार सम्पदा की जानकारी मिली जिसकी परिणति सिकंदर के आक्रमण में हुआ।
  • ईरानी लिपिकार (कातिब) भारत में लेखन का एक खास रूप ले आए जो आगे चलकर खरोष्ठी नाम से मशहूर हुआ। यह लिपि अरबी की तरह दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी।
  • अशोककालीन स्मारक, विशेष कर घंटा के आकार के गुंबज, कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूपों पर आधारित थे। अशोक के राज्यादेशों के प्रस्तावना और उनमें प्रयुक्त शब्दों में भी ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है।


यूनानी आक्रमण और उसके प्रभाव

  • ईसा पूर्व चैथी सदी में विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए यूनानियों और ईरानियों के बीच संघर्ष हुए। मकदूनियावासी सिकंदर के नेतृत्व में यूनानियों ने आखिरकार ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया।
  • अपने भारत अभियान में सिकंदर को अनेक देशद्रोही और पदलोलुप राजाओं की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहायता मिली। शशिगुप्त और आम्भी ने सिकंदर को सहायता का वचन दिया जिससे उसे बड़ा प्रोत्साहन मिला।
  • पुष्करावती के संजय तथा कई अन्य राजाओं ने सिकंदर की मैत्री स्वीकार करके उसे हर संभव सहायता दी लेकिन सिकंदर का मार्ग आसान नहीं था, क्योंकि कपिशा और तक्षशिला के बीच की स्वतंत्रताप्रिय और लड़ाकू जातियों ने पग-पग पर सिकंदर से लोहा लिया।
  • झेलम और चेनाव नदियों के बीच पुरू का राज्य था। सिकंदर के साथ हुुई मुठभेड़ में पुरू परास्त हुआ किंतु उसकी बहादुरी को देखते हुए सिकंदर बहुत प्रभावित हुआ और पुरु को उसका प्रदेश वापस लौटा दिया।
  • व्यास के पश्चिमी तट पर पहंुचकर सिकंदर की सेना ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।
  • ई.पू. 326 में सिकंदर वापस झेलम पहंुचा। यहां पर उसने अपने विजित प्रदेशों की समुचित शासन-व्यवस्था की।
  • व्यास और झेलम के बीच का भाग उसने पुरुराज को दे दिया।
  • झेलम और सिंध के बीच का इलाका गांधार-राज आम्भी को सुपुर्द किया गया।
  • सिंध के पश्चिम के भारतीय प्रदेश सेनापति फिलिप्स को दिए गए।
  • लौटते समय झेलम के समीपवर्ती प्रदेश में सिकंदर ने सौभूति को हराया।
  • रावी नदी के साथ के प्रदेश में मालवगण स्थित था। मालवा के पूर्व में क्षुद्रकगण था। सिकंदर ने अचानक मालवा पर आक्रमण किया। बहुत से मालव अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए मारे गए। सिकंदर ने क्षुद्रकों से संधि कर ली।
  • उत्तरी सिंध में सिकंदर ने मूसिकनोई नामक जनपद को हराया।
  • सिंधु नदी के मुहाने पर पहुंचकर उसने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया। जल सेनापति नियार्कस को जहाजी बेड़े के साथ समुद्र के मार्ग से वापस लौटने का आदेश देकर वह स्वयं मकरान के किनारे-किनारे स्थल मार्ग से अपने देश की ओर चला। रास्ते में ई. पू. 323 में बेबीलोन में सिकंदर की मृत्यु हो गई।
  • सिकंदर भारत में लगभग 19 महीने (326-325 ई.पू.) रहा।
  • सिकंदर के आक्रमण से पश्चिमी और पश्चिमोत्तर भारत के छोटे-बड़े राज्यों की सत्ता नष्ट हो गई। इन राज्यों के कमजोर पड़ जाने पर चंद्रगुप्त मौर्य के लिए अपना साम्राज्य प्रशस्त करने में आसानी हो गई।
  • एशिया में यवनों की कई बस्तियाँ हो गईं। इनसे भारतीयों का सांस्कृतिक आदान-प्रदान होने लगा। सिकंदर ने अपनी विजय-यात्रा के दौरान जिन स्कंधागारों और बस्तियों का निर्माण करवाया, उनके द्वारा यूनानी जीवन का क्षीण प्रभाव अपने सीमित क्षेत्र में भारत पर पड़ता रहा।
  •  सिकंदर के आक्रमण की तिथि (ई. पू. 326) ने प्राचीन भारतीय इतिहास के तिथिक्रम की अनेक गुत्थियों को सुलझा दिया। इसके अतिरिक्त सिकंदर के साथ अनेक यवन लेखक और इतिहासकार आए। उन्होंने जो कुछ लेखबद्ध किया, उससे हमें पंजाब और सिंघु की तत्कालीन परिस्थितियों का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है। इनसे प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में बड़ी सहायता मिली है।

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