वैष्णव मत की भाँति शैवमत भी दक्षिण भारत में साथ-साथ फैला। लगभग 63 नायनारों (शिव-भक्त) ने इस दिशा में काफी योगदान दिया।
नायनारों के भावप्रधान तमिल गीत, जिसे तेवारम स्तोत्र कहा जाता था, ने इसमें काफी अहम् भूमिका निभायी। ये तेवारम स्तोत्र जिसका दूसरा नाम द्राविड़ वेद है, शैव मंदिरों में अवसर विशेष पर बड़े भावपूर्ण ढंग से गाए जाते थे।
वैसे नायनार सभी जातियों से संबंधित होते थे, परंतु ब्राह्मण नायनार तिरुज्ञानसंबंधर उनमें काफी ख्याति- प्राप्त थे। नीची जाति के नायनार तिरुनावुक्करशु का भी सम्मान था।
माणिक्कवाशगर यद्यपि 63 नायनारों के गिनती में नहीं थे परंतु वे भी शिव के परम भक्तों में गिने जाते हैं। उनकी तमिल कृति तिरुवाशगम की गिनती भारत के सर्वाधिक भक्तिपूर्ण काव्य के रूप में होती है।
एक तरफ नायनारों ने भावप्रधान शिव-भक्ति का प्रचार किया तो दूसरी ओर कुछ शैव बौद्धिकों ने अलग-अलग तरह के शैव-आंदोलन को गति प्रदान की। आगमंत, शुद्ध व वीर शैववाद उनमें प्रमुख थे।
आगमंत मूलतः 28 आगम पर आधारित था जिसके बारे में यह प्रसिद्ध था कि स्वयं शिव ने इसकी रचना की है।
इसका दर्शन द्वैतवादी और अनेकवादी सिद्धांत पर आधारित था। इसके सबसे योग्य प्रचारक बारहवीं शती के अघोर शिवाचार्य थे।
शुद्ध शैववाद विशिष्टाद्वैतवाद के सिद्धांत पर विश्वास करता है। इसके प्रमुख प्रतिपादक श्रीकांत शिवाचार्य रामानुज से बहुत हद तक प्रभावित थे।
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