मृत संस्कार, धर्म और कला
मृत संस्कार
- सिन्धु प्रदेश में मुख्यतः तीन तरह से मृतक संस्कार करने की प्रथा थी। - (a) मृतक के शरीर को ज्यों- का-त्यों पृथ्वी में गाड़ देना, (b) शव को खुला छोड़कर पशु-पक्षियों को खिलाने के बाद कंकाल भाग को पृथ्वी में गाड़ना, (c) शव का अग्नि संस्कार कर देना।
- मेसोपोटामिया और मिस्र की तरह सिन्धु-सभ्यता में भी शवों के साथ जीवन की सभी आवश्यक वस्तुओं को गाड़ने की प्रथा थी। इससे स्पष्ट होता है कि सिन्धु सभ्यता के निवासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।
- हड़प्पा में शवों को गाड़ने और मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा प्रचलित थी।
- मोहनजोदड़ो में राख और हड्डियों से भरे बहुत से कलश मिले हैं।
स्मरणीय तथ्य
|
लिपि ज्ञान
- सिन्धु सभ्यता के निवासियों ने लेखन कला का भी विकास किया था। उनकी लिपि चित्रात्मक थी, जिनमें प्रत्येक लिपि रेखीय संकेत किसी जीवित एवं अजीवित वस्तु को दर्शाती थी।
- विद्वानों का विचार है कि साधारणतया इस लिपि की लिखावट दाहिनी से बाँयी ओर थी।
- कुछ विद्वानों का मत है कि यह वही लिपि है जिसका प्रयोग मिस्र, मेसोपोटामिया तथा पश्चिम एशिया में होता था। किन्तु यह सर्वमान्य नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सिन्धु प्रदेश की लिपि है और पश्चिमी एशिया की लिपियों से इसका किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है।
- सिन्धु लिपि में मुख्यतः 62 चिन्ह है।
- इस लिपि का कम्प्यूटर विश्लेषण पूर्व सोवियत संघ में 1964 में और भारत के टाटा इन्स्टिट्यूट आॅफ फंडामेन्टल रिसर्च में 1972 में हुआ।
धर्म और कला
- सिन्धु घाटी में किसी प्रकार का मंदिर या वेदी प्राप्त नहीं हुई है।
- हड़प्पा एवं बलूचिस्तान के अधिकांश स्थानों से प्राप्त स्त्री एवं सांड़ की मूर्तियों, भव्य भवन की रचना एवं उससे सम्बन्धित नालियां, स्नानागार, एवं मुहरों पर प्राप्त आकृतियों से लोगों के धार्मिक विचारों का पता चलता है।
नव-पाषाण युग
|
- क्वेटा संस्कृति से प्राप्त अवशेष धार्मिक विशेषताओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
- समकालीन पश्चिमी एशियाई संस्कृति के अनुरूप ही कुछ लोग मातृदेवी की उपासना करते थे।
- कुछ मुहरों में तीन सिर और एक सींगधारी पुरुष की आकृति खुदी हुई है। इतिहासकार इसे शिव के आद्यरूप पशुपति की आकृति मानते हैं।
- हड़प्पा की एक मुहर में एक नग्न महिला की आकृति बनी हुई है जो कुछ नीचे की तरफ झुकी हुई है और मूर्ति की योनि से पौधा उत्पन्न दिखाई पड़ता है, जिससे भूदेवी की उपासना की प्रथा का परिचय मिलता है।
- एक मूर्ति के सिर पर नाग की आकृति सर्पपूजा का प्रमाण देती है।
- कालीबंगन में एक यज्ञ स्थल प्राप्त हुआ है।
- योनि और लिंग जैसी अनेक पत्थर की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
- कुछ मुद्राओं से पशुपति और वृक्ष पूजा की भी जानकारी मिलती है।
- मृतकों के साथ गाड़ी जाने वाली दैनिक उपयोग की वस्तुओं से हड़प्पावासियों के पारलौकिक सत्ता में विश्वास का ज्ञान होता है।
- चित्रित मृदभांडों से सिंधु सभ्यता के नागरिकों के मृदा-पात्रों के निर्माण की कुशलता ज्ञात होती है।
- नगर योजना और जल-निष्कासन व्यवस्था के अनुरूप ही हड़प्पाकालीन पात्रों की उन्नातवस्था से एक तार्किक और सुव्यवस्थित मानसिकता का भान होता है।
- हड़प्पा से प्राप्त बलुआ पत्थर की मानव शरीर को दर्शाने वाली दो मूर्तियों से सिंधु सभ्यता के नागरिकों की रूपंकर कला में उन्नति दृष्टिगत होती है।
- इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त (संभवतया नर्तकी) मूर्ति की भाव-भंगिमायें धातु-मूर्तिकला का विकास दर्शाती हैं। खड़ी नग्न मूर्ति के गले में एक कंठाभूषण तराशा गया है और एक बाजू में पूरी तरह चूड़ियां तराशी गयी हैं। ऋग्वेद में उल्लिखित दासी की भाँति इस मूर्ति की नीग्रोइड आकृति बनाई गयी है।
- बैल का काफी संख्या में अंकन और कई सिर वाले जंतुओं के चित्र इन जंतुओं के धार्मिक महत्व को स्थापित करते हैं।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त पुजारी की मूर्ति संपूर्ण मूर्तिकला में महत्वपूर्ण है। पुजारी की बारीकी से तराशी गयी दाढ़ी, मूछें, साफ और संवरे हुये बाल इस मूर्ति की कलात्मक विशेषता है। पूजारी की मूर्ति में अंकित बड़े-बड़े होठ और चैड़ी नाक से इसके दास होने का ज्ञान होता है।
- हड़प्पाकालीन काष्ठकला और चित्रकला का एक भी उदाहरण प्राप्त नहीं हुआ है।
हड़प्पा संस्कृति का अन्त
- इस बात का अनुमान लगाना बहुत ही कठिन है कि हड़प्पा संस्कृति के विनाश का क्या कारण था।
- भूकम्प, जमीन का अचानक उठाव, सिन्धु की बदलती परिस्थिति, मौसम परिवर्तन आदि कारणों का अनुमान इसके विनाश के सम्बन्ध में लगाया जा सकता है। मोहनजोदड़ो में प्राप्त मानव कंकालों में एक नरमंुड पाया गया जिस पर एक कटा निशान था। इससे बर्बर आक्रमण और सामूहिक हत्याकांड का अनुमान लगाया जाता है।
- कुछ विद्वान इसके विनाश का कारण भयंकर बाढ़ को मानते हैं, क्योंकि बाढ़ से लाई गई ढेर सारी मिट्टी पायी गई।
- लोथल में भी बाढ़ की भयानकता के चिन्ह देखे गये हैं।
- कालीबंगन में बाढ़ या आक्रमण के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है। इस नगर के विनाश का कारण शायद घग्गर नदी का सूखना बताया जाता है।
- कुछ नगरों का पतन स्थानीय कारणों के कारण भी हो सकता है।
- सम्पूर्ण सभ्यता का अन्त अकस्मात ही नहीं हुआ था। हड़प्पा संस्कृति के पतन में लोथल और पंजाब का विनाश इस विचार की पुष्टि करता है।