राजनीतिक संगठन, औजार एवं खिलौने
राजनीतिक संगठन
- मोहनजोदड़ो का एक बड़ा भवन जान पड़ता है कि राजमहल या किसी शासक का मकान था। फिर भी यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि हड़प्पा संस्कृति के लोगों का कोई राजा होता था या नागरिकों की एक समिति उनका शासन चलाती थी।
- हड़प्पावासी युद्धों की अपेक्षा शायद व्यापार में अधिक व्यस्त रहते थे और हो सकता है कि व्यापारी-वर्ग का शासन चलता हो।
- सड़कों की सुव्यवस्था, नालियों द्वारा जल निकासी का उत्तम प्रबंध, नगर-योजना व शांतिमय जीवन के प्रमाणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि शासन-व्यवस्था अच्छी थी और विप्लव तथा अशांति से यह प्रदेश बहुत दिनों तक मुक्त था।
खेती एवं भोजन
- इस बात का साक्ष्य प्राप्त हुआ है कि वे लोग गेहूं, जौ, मटर, कपास, तिल एवं राई उपजाया करते थे (गेहूं और जौ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में, जौ कालीबंगन में और धान एवं बाजरा लोथल में)।
- यह बात अनिश्चित है कि जोताई का काम हल द्वारा होता था या कुदाल से, मगर कालीबंगन में जुते हुए खेत तथा उनमें रेहों का मिलना यह कुछ हद तक साबित करता है कि वे हल का प्रयोग करते थे।
- विद्वानों की यह धारणा है कि प्राचीन काल में सिन्ध में काफी वर्षा होती थी और बड़ी-बड़ी नदियों के होने से सिंचाई के लिए किसी प्रकार की समस्या नहीं थी (सिन्धु नदी के अलावा एक नदी मिहरन थी, जो 14वीं सदी में सूख गई)।
- उपरोक्त अनाजों के अलावा अधजली हड्डियों से स्पष्ट होता है कि ये लोग भी उस समय के अन्य लोगों की तरह ही भोजन के रूप में विभिन्न जानवरों के मांस, मछली एवं अन्य जलप्राणियों को खाते थे। वे लोग शायद दूध एवं सब्जी भी अपने भोजन में लेते थे।
- वहां सांड़, भेड़, सुअर, भैंस, ऊंट एवं हाथी की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं, जबकि कुत्ता और घोड़ों की हड्डियां जमीन की सतह पर प्राप्त हुई है, जिससे संदेह होता है कि ये जानवर बाद के काल में पाये जाते थे।
- उन लोगों को जंगली जानवरों का भी ज्ञान था, जिनमें गेंडा, बन्दर, बाघ, भालू एवं खरहा आदि प्रमुख थे, जिनकी तस्वीरें मुहरों एवं ताम्र तश्तरी पर अंकित है।
गहने एवं घरेलू सामान
- उस क्षेत्र में पत्थरों की कमी थी, किन्तु दरवाजे की कंुडी, छोटी मूर्ति, धार्मिक प्रतिमा आदि के लिए पत्थर आयात किये जाते थे।
- उन लोगों के ज्ञान में सोना, चांदी, ताम्र, टीन एवं शीशा जैसे धातु थे।
- मोहनजोदड़ो में कांस्य की प्राप्त हुई प्रतिमा से स्पष्ट हो जाता है कि उस समय कांसे का भी व्यवहार होता था।
- लोहा कहीं से भी प्राप्त नहीं हुआ है।
- मर्द एवं औरत दोनों ही सुन्दर गहनों का प्रयोग करते थे।
- अमीरों के लिए सोने, चांदी, तांबे एवं कीमती पत्थरों के गहने होते थे। वे लोग झुमके, गले का हार, अंगूठी, कंगन आदि का उपयोग करते थे।
- गरीबों के लिए हड्डियों, सेल (Shell) एवं मृण्मूर्ति (Terracota) के गहने थे।
- घरेलू सामानों के निर्माण में तांबा और कांसे का प्रयोग होता था।
- अधिकांशतया वे लोग मिट्टी के पके बर्तन बनाते थे। अधिक संख्या में ऐसे कटोरे, प्यालियां, तश्तरियां, फूलदान एवं पत्थर के बर्तन प्राप्त हुए है।
स्मरणीय तथ्य
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औजार एवं खिलौने
- युद्ध एवं शिकार के लिए पत्थर के औजार के साथ-साथ तांबे और कांसे के औजार प्रयोग किये जाने लगे।
- लोगों के पास अधिक संख्या में कुल्हाड़ी, छुरे, भाले, तीर और कमान, गदा एवं गोफन रहते थे।
- सुरक्षात्मक हथियार जैसे ढाल एवं कवच आदि का ज्ञान उन लोगों को नहीं था और न ही तलवार होने का प्रमाण ही मिला है।
- बटखरे एवं पांसे के लिए पत्थरों का प्रयोग होता था जो वहां से प्राप्त अवशेषों से स्पष्ट होता है।
- वे लोग अपना मनोरंजन शिकार, मछली पकड़कर एवं जंगली जानवरों को पालतू बनाकर करते थे।
- खुदाई में प्राप्त पांसों से सिद्ध होता है कि वैदिक आर्यों की तरह सिन्धु सभ्यता के लोग भी पांसे का खेल खेला करते थे।
- वे लोग संगीत, नृत्य एवं चित्रकारी का आनंद भी लेते थे।
- मोहनजोदड़ो में एक नाचती हुई लड़की की छोटी मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जो कांसे की बनी है।
- छोटे बटखरे घनाकार जबकि भारी बटखरे शंकुकार आकृति के होते थे।
- बच्चे खेलने के लिए खिलौने एवं खेल की गोली का प्रयोग करते थे। साधारणतया ये खिलौने मिट्टी के जानवर, पक्षी, आदमी, औरत एवं गाड़ियों के आकार के होते थे।
बुनाई, कपड़े एवं वस्त्र
- मोहनजोदड़ो के निवासियों के वस्त्र का अनुमान वहां से प्राप्त मूर्तियों से अथवा मुहरों पर जो चिन्ह उत्कीर्ण मिले है, उसी से लगाया जाता है।
- स्त्रियों और पुरुषों के वस्त्रों में कुछ अंश तक समानता थी।
- मोहनजोदड़ो की खुदाई में पर्याप्त संख्या में सूत लपेटनेवाला परेता मिला है। इससे पता चलता है कि वहां प्रत्येक घर में सूत कातने की प्रथा प्रचलित थी।
- सुइयों की प्राप्ति से पता चलता है कि लोग सिला हुआ कपड़ा पहनते थे।
- एक पुरुष मूर्ति के शरीर पर लम्बी शाल पायी गयी है जिसे वह बाँयें कंधे के ऊपर दाईं भुजा के नीचे फेंककर पहने हुए है।
- स्त्री-पुरुष दोनों टोपियों का व्यवहार करते थे।
- कुछ मनुष्य मूर्तियां दुपट्टे के आकार का वस्त्र पहने हुए है और नीचे धोती पहने हुए है जो संभवतः पुरोहित होने का संकेत करता है।
- कुछ मूर्तियाँ नंगी पायी गई है किन्तु इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि उस समय लोग नंगे रहते थे। ये संभवतः धार्मिक कार्यों के लिए होते थे।
स्मरणीय तथ्य
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व्यापार एवं वाणिज्य
- बलूचिस्तान, समुद्र तट के पास स्थित बालाकोट और सिंध में चन्हूदड़ो सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
- लोथल और चन्हूदड़ो में लाल (Carnelian) पत्थर और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
- चन्हूदड़ो में लाजवर्दमणि के कुछ अधबने मनके इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पा निवासी दूर दराज के स्थानों से बहूमूल्य पत्थर आयात करते थे और उन पर काम करके उन्हें बेचते थे।
- मोहनजोदड़ो में पत्थर की चिनाई करने वाले कुम्हार, तांबे और कांसे के शिल्पकार, ईंटें बनाने वाले, सील काटने वाले, मनके बनाने वाले आदि हस्त कौशल में निपुण लोगों की उपस्थिति के प्रमाण पाए गए हैं।
- वे राजस्थान की खेतड़ी खानों से तांबा प्राप्त करते थे।
- मध्यवर्ती राजस्थान में जोधपुर, बागोर और गणेश्वर बस्तियां, जो हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों के समकालीन मानी जाती हैं, संभवतः हड़प्पा सभ्यता के लिए कच्चे तांबे का स्रोत रही होंगी।
- गणेश्वर में 400 से अधिक तांबे के तीर शीर्ष, 50 मछली पकड़ने के कांटे और 58 तांबे की कुल्हाड़ियां पाई गई हैं।
- शायद हड़प्पा-सभ्यता के लोग तांबा बलूचिस्तान और उत्तरी-पश्चिमी सीमांत से भी प्राप्त करते थे।
- सोना संभवतः कर्नाटक के कोलार क्षेत्र और कश्मीर से प्राप्त किया जाता था। हड़प्पावासियों की समकालीन कुछ नवपाषाण युगीन बस्तियां भी इस क्षेत्र में पाई गई हैं।
- राजस्थान के जयपुर और सिरोही, पंजाब के हाज़रा कांगड़ा और झंग और काबुल और सिन्धु नदियों के किनारे सोने के मुलम्मों के प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा सभ्यता की बहुत सी बस्तियों से चांदी के बर्तन पाए गए हैं। यद्यपि इस क्षेत्र में चांदी के कोई विदित स्रोत नहीं हैं।
- चांदी शायद अफगानिस्तान और ईरान से आयात किया जाता होगा।
- संभवतः सिंध के व्यापारियों के मेसोपोटामिया से व्यापार संबंध थे तथा वे अपने माल के बदले में मेसोपोटामिया से चांदी प्राप्त करते थे।
- सीसा शायद कश्मीर या राजस्थान से प्राप्त किया जाता होगा। पंजाब और बलूचिस्तान में भी थोड़े बहुत सीसे के स्रोत थे।
- लाजवर्दमणि जो कि एक कीमती पत्थर था उत्तरी पूर्वी अफ़गानिस्तान में बदक्शां (Badakshan) में पाया जाता था। इस क्षेत्र (Altyn Depe) और अलतिन देपे ;।सजलद क्मचमद्ध जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियों का पाया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि हड़प्पावासियों ने इस स्रोत का लाभ उठाया होगा।
- फ़िरोजा और जेड मध्य एशिया से प्राप्त किए जाते थे।
स्मरणीय तथ्य
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- गोमेद, श्वेतवर्ण स्फटिक और लाज पत्थर सौराष्ट्र या पश्चिमी भारत से प्राप्त किये जाते थे।
- समुद्री सीपियां जो हड़प्पावासियों में बहुत लोकप्रिय थीं, गुजरात के समुद्र तट और पश्चिमी भारत से प्राप्त की जाती थीं। संभवतः अच्छी किस्म की लकड़ी अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों से प्राप्त होती थी और मध्य सिंधु घाटी में नदियों द्वारा पहुँचाई जाती थी।
- दूर फैली हुई हड़प्पा कालीन बस्तियों में भी नाप और तौल की व्यवस्थाओं में समरूपता थी।
- तौल निम्न मूल्यांकों में द्विचर प्रणाली के अनुसार थाः 1, 2, 4, 8 से 64 तक फिर 150 तक और फिर 16 से गुणा होने वाले दशमलव 320, 640, 1600 और 3200 आदि तक।
- ये चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बनते थे और साधारणतया घनाकार होते थे।
- लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर का एक फुट की इकाई पर आधारित थी और एक हाथ की इकाई लगभग 51.8 से 53.6 सेंटीमीटर तक होती थी।
- मेसोपोटामिया हड़प्पा-सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से हज़ारों मील दूर स्थित था फिर भी इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापार सम्बन्ध थे।
- विनिमय के विषय में हमारी जानकारी का आधार मेसोपोटामिया में पाई गई विशिष्ट हड़प्पाकालीन मुहरें हैं।
- मेसोपोटामिया के सूसा (Susa) उर (Ur) आदि शहरों में हड़प्पा सभ्यता की या हड़प्पाकालीन मुहरों से मिलती-जुलती लगभग दो दर्जन मुहरें पाई गई है। हाल ही में फारस की खाड़ी में फैलका (Failka) और बहरिन (Behrain) जैसे प्राचीन स्थानों में भी हड़प्पाकालीन मुहरें पाई गई है।
- मेसोपोटामिया के निप्पुर (Nippur) शहर में एक मुहर पाई गई है जिस पर हड़प्पाकालीन लिपि उत्कीर्ण है और एक सींग वाला पशु बना हुआ है।
- दो चैकोर सिंधु मुहरें जिन पर एक सींग वाला पशु और सिन्धु लिपि उत्कीर्ण है, मेसोपोटामिया के किश (Kish) शहर में पाई गई है।
- एक अन्य शहर उम्मा (Umma) में भी सिंधु सभ्यता की एक मुहर पाई गई है।
- मेसोपोटामिया में स्थित अक्काड़ (Akkad) के प्रसिद्ध सम्राट सारगाॅन (Sargon) (2350 ई. पू.) का यह दावा था कि दिलमुन, मगान (Dilmun, Magan) और मेलुहा (Meluha) के जहाज़ उसकी राजधानी में लंगर डालते थे।
- विद्वान साधारणतया मेलुहा तथा हड़प्पा-सभ्यता के समुद्रतटीय नगरों या सिंधु नदी के क्षेत्र को एक ही मानते है। कुछ विद्वानों का मानना है कि मगान (Magan) तथा मकरान समुद्रतट एक ही है।
- उर (Ur) शहर के व्यापारियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ अन्य दस्तावेज भी पाए गए है। ये इस बात की ओर संकेत करते है कि उर (Ur) के व्यापारी मेलुहा से तांबा, गोमेद, हाथी दांत, सीपी, लाजवर्दमणि, मोती और आबनूस आयात करते थे।
- हड़प्पा में मेसोपोटामिया की वस्तुओं का न पाया जाना इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि परंपरागत रूप से मेसोपोटामिया के लोग कपड़े, ऊन, खुशबूदार तेल और चमड़े के उत्पाद बाहर भेजते थे। ये सभी वस्तुएं जल्दी नष्ट हो जाती है इस कारण इनके अवशेष नहीं मिले है।
- हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों में चांदी के स्त्रोत नहीं थे। लेकिन वहाँ के लोग इसका काफी मात्रा में प्रयोग करते थे। संभवतः यह मेसोपोटामिया से आयात किया जाता होगा।
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाई गई मुहरों में जहाज़ों और नावों को चित्रित किया गया है।
- लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का एक नमूना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी चिन्हित खोल तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद है। लोथल में ही 219 x 37 मीटर लम्बाई का एक हौज मिला है जिसकी 4.5 मीटर ऊंची ईंटों की दीवारें है। इसके उत्खनक ने इसको एक जहाजी मालघाट के रूप में पहचाना है। इस स्थान के अलावा अरब सागर के समुद्रतट पर भी अनेक बंदरगाह थे।
- रंगपुर, सोमनाथ, बालाकोट जैसे स्थान हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में प्रयोग में लाए जाते थे।
- मकरान समुद्रतट जैसे अनुपयोगी क्षेत्रों में भी सुत्कागेंन-डोर और सुत्काकोह जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियां पाई गई है। शायद बारिश के महीनों में वे हड़प्पा सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में उपयोग में लाये जाते थे।
- बैलगाड़ी अंतर्देशीय परिवहन का साधन थी। हड़प्पाकालीन बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमूने पाए गए है। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमूना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है।
उद्भव संबंधी विचारधाराएं
पतन संबंधी विचारधाराएं
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प्रमुख स्थल व प्राप्त सामग्री | |
स्थल | सामग्री |
हड़प्पा | नृत्य मुद्रा की प्रस्तर मूर्ति, अन्न-भंडारगृह, कब्रिस्तान, गेहूँ व जौ, गरुड़ के चित्रयुक्त मुद्रा व अन्य मुद्राएँ |
मोहनजोदड़ो | बुना सूती कपड़े का टुकड़ा, पुजारी का सिर, नृत्य की मुद्रा में स्त्री की कांस्यमूर्ति, मातृदेवी की मृण्मूर्ति, पशुपति की मुहर, लिंगीय प्रस्तर, तांबे का ढेर, बटखरे, पत्थर व मिट्टी के पके बर्तन, विशाल स्नानागार, विशाल अन्नागार |
कालिबंगन | बेलनाकार मुहर, अग्नि हवन-कुंड, कब्रिस्तान, जौ, हल का चिह्न, चूड़ियाँ, ऊँट की अस्थियाँ |
चान्हुदड़ो | मनका बनाने का कारखाना, दवात |
लोथल | घोड़े का चित्र, दीवार से घिरी बस्ती, गोदीबाड़ा (डाॅकयार्ड) के सबूत, तांबे के पक्षी, बैल, खरगोश और कुत्ते की आकृति |
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