बौद्ध धर्म और बौद्ध साहित्य
बौद्ध धर्म
- बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध महावीर के समकालीन थे। इनका जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी ग्राम के आम्र-कुंज में हुआ था।
- इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
- ये उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में रूम्मिनदेई के निकट कपिलवस्तु के शाक्य क्षत्रिय कुल के थे।
- जन्म के सातवें दिन उनकी माता का देहावसान हो गया और उनका लालन-पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया।
- इनकी माता का नाम महामाया था जो कोशल राजवंश की कन्या थी।
- इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो संभवतः कपिलवस्तु के निर्वाचत राजा और गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे। गौतम बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा था।
- 29 वर्ष की उम्र में वे महावीर की तरह घर से निकल पड़े। सात वर्षों तक भटकते रहने के बाद 35 वर्ष की उम्र में बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। तब से वे बुद्ध अर्थात् प्रज्ञावान कहलाने लगे।
- इसके बाद बुद्ध ने बनारस के नजदीक सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया जिसे धर्म-चक्र प्रवर्तन कहते हैं। इसके बाद बुद्ध ने आजीवन अपने उपदेशों का प्रचार किया।
- 80 वर्ष की उम्र में 483 ई. पू. में पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई। इसे महापरिनिर्वाण कहते हैं।
बौद्ध धर्म के सिद्धांत
- बौद्ध धर्म के मूलाधार चार आर्य सत्य हैं। ये हैं - दुःख, दुख समुदाय, दुःख निरोध तथा दुःख निरोध-गामिनी-प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग) अर्थात् अष्टांगिक मार्ग।
- ये आठ मार्ग हैं - सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। इस अष्टांगिक मार्ग के अनुशीलन से व्यक्ति निर्वारण की ओर अग्रसर होता है।
- बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग के अंतर्गत अधिक सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करना या अत्यधिक काया-क्लेश में संलग्न होना, दोनों को वर्जित किया है। उन्होंने इस संबंध में मध्यम प्रतिपदा (मार्ग) का उपदेश दिया है।
- जैन तीर्थंकरों की तरह बुद्ध ने भी अपने अनुयायियों के लिए आचार-संहिता बनाए। इसके मुख्य नियम हैं - (i) पराये धन का लोभ नहीं करना, (ii) हिंसा नहीं करना, (iii) नशा का सेवन न करना और (iv) दुराचार से दूर रहना।
वशिष्टताएं एवं प्रसार के कारण
- बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा को नहीं मानता। इस बात को हम भारतीय धर्मों के इतिहास में एक क्रांति कह सकते हैं।
- बौद्ध धर्म वैदिक क्षेत्र के बाहर के लोगों को अधिक भाया और वे लोग सुविधापूर्वक इस धर्म में दीक्षित हुए।
- मगध के निवासी इसकी ओर तुरंत उन्मुख हुए, क्योंकि कट्टर ब्राह्मण उन्हें नीच मानते थे और मगध आर्यों की पुण्य-भूमि आर्यावत्र्त की सीमा के बाहर पड़ता था।
- आम लोगों की भाषा पालि को अपनाने से भी इसके प्रचार को बल मिला।
- गौतम बुद्ध ने एक संघ की स्थापना की, जिसमें हर व्यक्ति को बिना जाति या लिंग भेद के प्रवेश दिया जाता था।
- बुद्ध के निर्वाण के दौ सौ साल बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया। यह बौद्ध धर्म के इतिहास में युग-प्रवर्तक घटना सिद्ध हुई। अशोक ने अपने धर्मदूतों के द्वारा इस धर्म को मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया और श्रीलंका में फैलाया और इसे एक विश्व धर्म बना दिया।
ह्रास के कारण
- ईसा की बारहवीं सदी आते-आते बौद्ध धर्म भारत से लुप्त-सा हो गया। इसके मुख्य कारण थे - इसमें भी ब्राह्मण धर्म की वे बुराइयां घुस गईं जिनके विरुद्ध इसने आरम्भ में लड़ाई छेड़ी थी; कालांतर में यह उन्हीं कर्मकांडों और अनुष्ठानों के जाल में फंस गया जिनकी यह निन्दा करता था; बौद्ध धर्म की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए ब्राह्मणों ने अपने धर्म को सुधारा, पशुधन की रक्षा पर बल दिया तथा वक्तियों और शूद्रों के लिए भी धर्म का मार्ग प्रशस्त किया।
- दूसरी ओर बौद्ध धर्म में विकृतियां आती गईं। बौद्ध भिक्षु जनसामान्य की भाषा को छोड़ संस्कृत को अपनाने लगे। ईसा की पहली सदी से वे बड़ी मात्रा में प्रतिमा-पूजन करने लगे और उपासकोंसे खूब चढ़ावा लेने लगे।
- सातवीं सदी के आते-आते बौद्ध विहार विलासी लोगों के प्रभुत्व में आ गए और उन कुकर्मों के केन्द्र बन गए जिनका गौतम बुद्ध ने कड़ाई के साथ निषेध किया था।
- अपनी अपार सम्पत्ति के कारण बुद्ध विहार हमलावरों के भी शिकार हुए। मोटे तौर पर बारहवीं सदी तक बौद्ध धर्म अपने जन्म-स्थल से करीब-करीब लुप्त हो चुका था।
स्मरणीय तथ्य | |
गौतम | बुद्ध का गोत्र नाम |
यशोधरा | कोल्लिवंशीय कन्या व बुद्ध की पत्नी |
चन्ना | बुद्ध का सारथी |
कंठक | बुद्ध का प्रिय घोड़ा |
महाभिनिष्क्रमण | 29 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध द्वारा गृहत्याग |
आलार कलाम | गृहपरित्याग के पश्चात बुद्ध वैशाली के आलार कलाम के शिष्य बने। कलाम सांख्य दर्शन की शिक्षा देते थे। यहीं बुद्ध ने समाधि की सातवीं अवस्था को प्राप्त किया जिसे अकिंचनयत्न कहते हैं। |
उद्रक रामपुत्र | कलाम के पश्चात् बुद्ध ने राजगृह में उद्रक रामपुत्र को अपना गुरु माना। |
निरंजना | आधुनिक लिलाजन नदी जिसके तट पर बुद्ध ने 35 वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया। |
सुजाता | निर्वाण प्राप्ति के बाद बुद्ध ने इस कन्या के हाथों भोजन ग्रहण किया। |
मार | कामदेव रूप जिसने बुद्ध की समाधि भंग करने की चेष्टा की। |
बोधिवृक्ष | इसके नीचे बैठकर बुद्ध ने ज्ञान-प्राप्ति की थी। गौड़ राजा शशांक ने इस वृक्ष को कटवा दिया। |
धम्मचक्रप्रवर्तन | बुद्ध द्वारा सारनाथ (इसिपत्तन) में पांच ब्राह्मण साथियों (जो राजगृह तपस्या के दौरान बुद्ध द्वारा अन्नग्रहण करने के पश्चात् उनसे विलग हो गए थे।) को दिया गया प्रथम उपदेश। सारनाथ में ही बुद्ध ने संघ की स्थापना की। |
उपालि व आनन्द | बुद्ध के प्रधान शिष्य। |
चुन्द | इसके द्वारा अर्पित भोजन (सुअर का मांस) ग्रहण करने के पश्चात् बुद्ध की मृत्यु हुई। |
महापरिनिर्वाण | बौद्ध साहित्यों में बुद्ध की मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा गया है। |
उपादेयता और प्रभाव
- यों तो बौद्ध भिक्षु संसार से विरक्त रहते और बार-बार लोभी ब्राह्मणोंकी निन्दा करते थे, फिर भी कई मामलोंमें ब्राह्मणोंसे उनका साम्य था। दोनों ही उत्पादन-कार्य में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेते थे और समाज से मिली भिक्षा या दान पर जीते थे।
- बौद्ध धर्म ने वक्तियोंऔर शूद्रोंके लिए अपने द्वार खोलकर समाज पर गहरा प्रभाव जमाया।
- ब्राह्मण धर्म ने वक्तियोंऔर शूद्रोंको एक ही दर्जे में रखा था और उन्हेंयज्ञोपवीत संस्कार या वेदाध्ययन की अनुमति नहीं थी। बौद्ध धर्म ग्रहण करने पर उन्हेंइस हीनता से मुक्ति मिल गई।
- इसने लोगोंको यह सुझाया कि किसी वस्तु को यों ही नहीं बल्कि भली-भांति गुणदोष का विवेचन कर ग्रहण करें। कुछ हद तक अंधविश्वास का स्थान तर्क ने ले लिया।
- बौद्धों ने अपने लेखन से पालि को समृद्ध किया। बौद्ध विहार शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र बने।
- भारत में पूजित पहली मानव प्रतिमाएं शायद बुद्ध की ही हैं।
- मध्य एशियाई सम्पर्क के कारण गंधार और मथुरा में बौद्ध कला फूली-फली।
बौद्ध साहित्य
- कहा जाता है कि प्रथम बौद्ध महासंगीति के दौरान उपालि ने विनय पिटक (यह बौद्ध संघ की नियमावली है) का पाठ किया, जो उसने बुद्ध से सुना था।
- आनन्द ने इसी महासंगीति के दौरान सुत्त पिटक का गायन किया जो धर्मसिद्धान्त एवं नीतिविषयक मामलोंमें बुद्ध के उपदेशोंका महान संकलन है।
- कहा जाता है कि अभिधम्म पिटक के कथावत्थु का संकलन तृतीय बौद्ध महासंगीति के दौरान हुआ।
- चीनी परम्परा के अनुसार चौथे महासंगीति के दौरान सर्वास्तिवादिन सिद्धांतों का महाविभाषा के रूप में संकलन किया गया।
- स्थाविरवादिनोंके पालि धर्मग्रंथोंको तीन वर्गों (पिटकों) में विभाजित किया जाता है - विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक।
- विनय पिटक बौद्ध संघोंकी वह नियमावली है जिसे स्वयं बुद्ध द्वारा प्रतिपादित माना जाता है। प्रत्येक नियमोंके साथ उन परिस्थितियों का भी वर्णन है जिसके तहत ये नियम बनाए गए। विनय पिटक में अपेक्षाकृत प्रारम्भिक परम्परागत विषयों का वर्णन है।
- तीनों पिटकों में वृहतम् एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुत्त पिटक है। यह पांच निकायों(भागों) में विभक्त हैः
(i) दीर्घ निकाय, जो बुद्ध के दीर्घ उपदेशोंका संकलन है।
(ii) मज्झिम निकाय, जो लघु उपदेशों का संकलन है।
(iii) संयुत्त निकाय, जो सदृश विषयोंपर संक्षिप्त उद्धोषणाओं का संकलन है।
(iv) अंगुत्तर निकाय, जो 2000 से अधिक संक्षिप्त वक्तव्यों का संकलन है।
(v) खुद्दक निकाय: दिव्यावदान में प्रथम चार निकायों का ही उल्लेख मिलता है लेकिन यह सर्वास्तिवाद का ग्रंथ है। बुद्धघोष नामक प्रसिद्ध भाष्यकार ने सुदिन्न नामक एक भिक्षु का मत उद्धृत किया है, जिससे जान पड़ता है कि प्राचीन काल में कुछ ऐसे भिक्षुक थे, जो खुद्दक निकाय (क्षुद्रक निकाय) को सुत्त पिटक के अंतर्गत नहीं मानना चाहते थे। दो बौद्ध संप्रदायोंमें खुद्दक निकाय के ग्रंथोंकी दो प्रकार की सूची दी हुई है। एक मत के अनुसार इसकी संख्या 12 और दूसरे मत के अनुसार 15 है। अंतिम मत को ही प्रामाणिक समझकर बुद्धघोष ने पंद्रह ग्रंथोंकी सूची दी है, जिसमें धम्मपद, थेरगाथा, थेरीगाथा, जातक आदि उल्लेखनीय है।
बौद्ध महासंगीति
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- अभिधम्म पिटक बुद्ध के बहुत बाद संग्रह किए गए थे। सुत्त पिटक की प्रतिपाद्य वस्तु से कोई नवीनता इसमें नहीं है। दोनोंमें अंतर सिर्फ इतना है कि सुत्त पिटक सरल, सरस और सहज बौद्ध सिद्धांतोंका संग्रह है और अभिधम्म में पंडिताऊपन, रुक्षता और वर्गीकरण की अधिकता है। फिर भी बौद्ध-दर्शन, बौद्ध परिभाषा आदि के समझने में यह बहुत ही उपयोगी है।
- पालि-ग्रंथों में कुल मिलाकर नौ बौद्ध महासंगीतियोंका उल्लेख है।
- वैसे बौद्ध साहित्य जिनकी मूल रचना पालि में नहीं हुई, अनुपालि या अनुपिटक ग्रंथ कहलाते हैं। इनमें अधिकांश श्री लंका के भिक्षुओंद्वारा रचित हैं।
- जो अनुपालि ग्रंथ श्री लंका में नहीं लिखे गए उनमें सबसे प्रसिद्ध मिलिंदपण्णहो या मिलिंदप्रश्न है। ग्रीक राजा मीनांडर और बौद्ध संन्यासी नागसेन के बीच जो तत्त्व चर्चा हुई थी, उसी का यह लिपिबद्ध रूप है।
- दूसरा ग्रंथ जो भारतवर्ष में लिखा गया था, वह है नेत्तिप्रकरण जिसे नेत्तिगंध या नेत्ति भी कहते हैं। इसके कत्र्ता बुद्ध के शिष्य महाकच्चायन हैं जो पेटकोपदेश के भी रचयिता माने जाते हैं।
- श्रीलंका में रचित अनुपिटक ग्रंथोंमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है बुद्धघोष की अट्ठकथाएँ (या भाष्य)।
- श्रीलंका में जो नई चीज लिखी गईं, इनमें सबसे पहले निदान कथा का नाम लिया जाना चाहिए।
- श्रीलंका में ही दो ऐतिहासिक काव्य दीपवंश और महावंश भी लिखे गए। दोनोंही काव्य पांचवीं शताब्दी की कृति माने जाते हैं।
- मूल सर्वास्तिवादियोंके प्रसिद्ध ग्रंथों का चीनी यात्री इत्सिंग ने चीनी भाषा में अनुवाद किया था।
- हीनयान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ महावस्तुअवदान (संक्षेप में महावस्तु) है। यह पुस्तक महासांधिक संप्रदाय की लोकोत्तरवादी शाखा का विनय पिटक है।
- ललितविस्तर महायान संप्रदाय का ग्रंथ है। इसमें सभी महायानी लक्षण विद्यमान हैं, यद्यपि यह ग्रंथ मूल रूप से हीनयान संप्रदाय के सर्वास्तिवादियोंके लिए लिखा गया था।
- अश्वघोष रचित बुद्धरचित और सौंदरानंद संस्कृत काव्य के भूषण माने जाते हैं।
- महायानसूत्रोंमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ सद्धर्म-पुंडरीक है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण दार्शनिक महायानसूत्र हैं प्रज्ञापारमिताएं। जिस प्रकार प्रज्ञापारमिताएं शून्यवाद का प्रचार करती हैं, उसी प्रकार सद्धर्मलंकावतार-सूत्र विज्ञानवाद का।
- माध्यमिक-कारिका और प्रज्ञापारमिता-कारिका नागार्जुन की प्रसिद्ध कृतियां हैं।
बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय
महायान: इसकी स्थापना नागर्जुन ने की थी। महायानी लोग बोधिसत्व, बोधिसत्व की मूर्ति तथा संस्कृत भाषा आदि के प्रयोग में विश्वास करते थे। उन्होंने बुद्ध को अवतार मानकर उनकी मूर्ति बनाकर उपासना करना आरम्भ कर दिया। यह संप्रदाय तिब्बत, चीन, कोरिया, मंगोलिया और जापान में फैला। वसुमित्र, अश्वघोष, कनिष्क और नागार्जुन इसके प्रमुख प्रवत्र्तक थे।
हीनयान: जिन अनुयायियोंने बिना किसी परिवर्तन के बुद्ध के मूल उपदेशोंको स्वीकार किया, वे हीनयानी कहलाए। श्रीलंका, बर्मा, स्याम, जावा आदि देशोंमें इस सम्प्रदाय के लोग हैं।
वज्रयान: सातवीं सदी आते-आते बौद्ध धर्म का एक नया रूप सामने आया, जिसे वज्रयान कहते हैं। इस सम्प्रदाय के अनुयायियोंने बुद्ध को अलौकिक सिद्धियोंवाला पुरुष माना। इसमें मंत्र, हठयोग और तांत्रिक आचारोंकी प्रधानता थी।
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